
नहाए खाए के साथ आरंभ हुआ जीवित्पुत्रिका व्रत
संतान प्राप्ति के लिए आज पूरे देश में मनाया जा रहा हैं
मुंबई। दबंग खबरे ही एकमात्र ऐसा साधन है, जो आपके दुख-सुख से लेकर सभी तीज त्योहारों में भी आपके साथ है। इसी तरह कठिन व्रतों में से एक माना जाने वाला यह जीवित्पुत्रिका व्रत भी है। इस पढ़िए खाश रपट दरअसल हिंदू कैलेंडर के हिसाब से प्रत्येक वर्ष अश्विन मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इसे इसे जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत को माताएं संतान प्राप्ति व अपनी संतान की लंबी आयु की कामना के साथ रखती हैं। यह पर्व पूरे तीन दिन तक चलता है। इसे भी कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। माताएं अपनी संतान के लिए ये व्रत निराहार और निर्जला करती हैं। इस बार जीवित्पुत्रिका व्रत का पर्व २८ सितंबर से लेकर ३० सितंबर तक चलेगा। जीवत्पुत्रिका व्रत २८ सितंबर को नहाए खाए के साथ आरंभ होगा और २९ सितंबर को पूरे दिन निर्जला उपवास रखा जाएगा। इसके अगले दिन ३० सितंबर को व्रत का पारण होने के साथ ही इस पर्व का समापन किया जाएगा। गौरतलब हो कि पूरे देश के साथ महानगरी में भी इस व्रत की चमक दिखाई पड़ रही है। इसी तरह मुंबई के साथ नालासोपारा के बलईपाढ़ा निवासी बहुत सी भदोही जिले की रड़ई की बहुओं ने यह व्रत यहां मायानगरी में भी रखा हुआ है। इस दौरान शिल्पा सिंह आदि ने अपने बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया।
यहां कुंवारी कन्याएं भी रहती यह व्रत
इसे आदिवासी और गैर आदिवासी भी निष्ठा और विश्वास के साथ मनाते हैं। मान्यता के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत माताएं अपनी संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखती हैं। जितिया की पौराणिक कथा में भी संतान के दीर्घायु होने की कामना से जीवित्पुत्रिका व्रत करने का वर्णन आता है। इसकी कहानी राजा जिमुतवाहन से जुड़ी हुई है। जिन महिलाओं के बच्चे नहीं हैं, उन्हें जितिया व्रत करने का अधिकार नहीं है, लेकिन कर्रा प्रखंड के पश्चिमी भाग के कई गाांवों में बाल-बच्चेदार महिलाएं के साथ, कुंवारी कन्याएं भी जितिया का व्रत करती हैं। सुनने में यह भले ही थोड़ा अटपटा लगे, पर पहाड़टोली, बमरजा, डुमरगड़ी, कइसरा, खटंगा, कंडरकेला, कुरकुरिया, बुढ़ीरोमा सहित कई गांवों में कुंवारी लड़कियां अच्छे वर और घर पाने की कामना से जितिया का उपवास रखती हैं।