
राइट टू सीट अधिकार को लेकर पढ़ें दबंग खबरें की खाश रपट
राइट टू सीट अधिकार को लेकर पढ़ें दबंग खबरें की खाश रपट
मुंबई। किसी को भी एक-दो दिन लगातार ८ से १२ घंटे कार्य करना हो तो भले कर ले, नहीं तो मरता क्या करता वाली कहावत के मुताबिक जीवन यापन करने के लिए मजबूरी में करेगा ही। इसी से संबंधित पूरे देश का राइट टू सीट मतलब दुकानों पर काम करने वाले कर्मचारियों ने बैठने का अधिकार तमिलनाडु ने लागू भी लागू कर दिया। इसके पहले यह नियम मात्र केरल में लागू था। इस पर दबंग खबरे के मुंबई व्यूरो से दुकानों पर कार्य करने वाले कर्मचारियों ने अपनी भी व्यथा बताई, जिस पर कई कर्मचारियों से इस बाबत बात की गई।
गौरतलब हो कि भारत में दुकानों पर काम करने वाले कर्मचारियों को खड़े होकर ही काम करना होता है। यह नियम महिला और पुरुष दोनों कर्मचारियों पर लागू होता है, लेकिन अब इस नियम को पिछले महीने ही लागू किया गया है और ऐसा करने वाला तमिलनाडु दूसरा राज्य बन गया है। इससे पहले यह नियम सिर्फ केरल में ही लागू था। पिछले कुछ सालों से तमिलनाडु की दुकानों में कर्मचारियों खास तौर से महिलाओं को बैठने को ना मिलने से बहुत समस्याओं की शिकायतें आ रही थीं, इसीलिए सरकार द्वारा यह कदम उठाया गया। जैसा कि 'बैठने के अधिकार' कानून से सबसे ज्यादा फायदा महिलाओं को होगा, क्योंकि दिन भर खड़े रहकर काम करने की वजह से यहां कि महिलाओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। आलम यह था कि बहुत से मल्टी डिपार्टमेंट शोरूम, जिसमें ज्वेलरी और टेक्स्टाइल ब्रांड में काम करने वाले कर्मचारियों को बैठने के लिए कुर्सी या स्टूल तक नहीं दी जाती हैं। इससे कभी-कभी खड़े रहने की वजह से उनके पैर में सूजन भी आ जाती थी, लेकिन अब दुकानदारों को कर्मचारियों के बैठने की व्यवस्था करनी होगी।
ज्ञात हो कि इसी बाबत जब दबंग खबरे के मुंबई व्युरो सायन से लेकर माटुंगा, दादर, परेल, मस्जिद, ग्रांट रोड आदि स्थानों पर स्थित कई कपड़ों की दुकानों व शोरूमों में जाकर कर्मचारियों से हाल जाना। इस पर पिछले १० सालों से धारावी की एक कपड़े के स्टोर में काम करने वाली ३५ साल की रेश्मा कहती हैं कि अब तक इन शिफ्ट के दौरान एकमात्र आराम का समय हमें २० मिनट के लंच ब्रेक में मिलता है। हमारे दुखते पैरों को सहारा देने के लिए हम कुछ पल के लिए शेल्फ के सहारे आराम कर लेते हैं। आगे वह कहती हैं कि ग्राहक नहीं होने पर भी हमें फर्श पर बैठने की इजाजत नहीं होती'। आगे वह और उनके साथ अन्य सहयोगी चहक कर बोलते हैं कि जिस तरह दूसरा राज्य राइट टू सीट का अधिकार देने वाला राज्य तमिलनाडु हुआ, उसी तरह महाराष्ट्र खास करके मुंबई में जरूर लागू होना चाहिए। इसी तरह का ही पुरुष और महिला इनमें कार्य करने वाले कर्मचारियों का मिला-जुला बयान रहा।