
जुलूस में सिर्फ २५ लोगों के शरीक होने की मिली अनुमति
जुलूस में सिर्फ २५ लोगों के शरीक होने की मिली अनुमति
मुंबई। पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन को दुनिया भर में ईद मिलाद उन-नबी या ईद-ए-मिलाद या मालविद के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि रबी-उल-अव्वल के १२वें दिन ही मोहम्मद साहब का निधन भी हुआ था। इस्लामी चंद्र कैलेंडर के अनुसार, भारत में रबी-उल-अव्वल का महीना ०८ अक्टूबर २०२१ से शुरू हुआ है, जबकि ईद मिलाद उन-नबी १९ अक्टूबर २०२१ को मनाया जायेगा। इस दिन ईद मिलाद उन नबी की दावत का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही मोहम्मद साहब की याद में जुलूस इत्यादि का भी आयोजन किया जाता है। यद्यपि इस साल भी कोविड-१९ की महामारी के कारण बड़े जुलूस या समारोह के आयोजन की संभावना कम ही लगती है। बताया गया है कि राज्य सरकार ने पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन पर जुलूस में सिर्फ २५ लोगों के शरीक होने की अनुमति दी है। सरकार की इस गाइडलाइंस को लेकर मुस्लिम समाज ने नाराजगी जताई है। उनके मुताबिक, जब राज्य में स्कूल, कॉलेज और मॉल्स खुल गए हैं, राजनैतिक दल बड़े कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं, तब ईद-ए-मिलाद-उन-नबी पर निकलनेवाले जुलूस में केवल ५ वाहन और २५ लोगों के शरीक होने की अनुमति देना अनुचित है। यह दर्शाता है कि सरकार उनके समाज के साथ पक्षपात कर रही है। एक मुस्लिम संस्था की तरफ से कहा गया है कि राज्य सरकार के गाइडलाइन में पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन के जुलूस में ५ ट्रक की अनुमति दी गई है। हर ट्रक में सिर्फ ५ लोग सवार हो सकते हैं। इस तरह से पूरे जुलूस में २५ लोगों के शरीक होने की अनुमति मिली है, जबकि बॉम्बे हाई कोर्ट ने चेहल्लूम के जुलूस में शरीक होने के लिए १० ट्रक और १५० लोगों के शामिल होने की अनुमति दी थी।
गौरतलब हो कि त्योहारों की इन दिनों धूम मची हुई है। इसी तरह मुस्लिम भाइयों के 'ईद' का आशय उत्सव और 'मिलाद' यानी जन्म अर्थात जन्मोत्सव। यहाँ ईद-ए-मिलाद का मतलब है, पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्मोत्सव सेलिब्रेट करना है। इस्लाम धर्म के मानने वालों के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण दिन होता है। यह दिन इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल के १२वें दिन मनाया जाता है। ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक, मोहम्मद साहब का जन्म सन् ५७० में सऊदी अरब में हुआ था। मुहम्मद साहब ने ही इस्लाम धर्म की स्थापना की, जो वस्तुतः अल्लाह की इबादत के लिए समर्पित था। सन् ६३२ में पैगंबर मोहम्मद साहब की मृत्यु के पश्चात, कई मुसलमानों ने अनौपचारिक उत्सवों के साथ उनके जीवन और उनकी शिक्षाओं को महत्व देते हुए मोहम्मद साहब के जन्मदिन का जश्न मनाना शुरू कर दिया था।